Monday, February 13, 2017

क्या कभी सोते समय

क्या कभी सोते समय
सोचा कि दिन में क्या किया ?
जब सुबह निकले तो
चौराहे पे घायल था पड़ा,
चंद पल पहले ही उस पर
एक ट्रक था जा चढ़ा ;
आपने देखा नज़र भर
और आगे बढ़ गए,
एक क्षण को भी न सोचा
वो मरा है या जिया !
दोपहर को लंच में
कुलचे गरम खाते रहे,
सामने बच्चे पसारे
हाथ रिरियाते रहे ;
ना दिखी छवि आपके
अपनों की उनमें आपको,
याद करिए, एक भूखे को
निवाला कब दिया !
शाम को नुक्कड़ पे लड़की
मनचले छेड़ा किए,
करके अनदेखी निकल आए थे
सिर टेढ़ा किए ;
नाज़ तो करते बहुत हो
स्वयं की मर्दानगी पर,
फिर बताओ उस बखत क्यों
मुंह तुम्हारा था सिया !
- ओमप्रकाश तिवारी

काश ! हम भी सीख पाते

काश ! हम भी सीख पाते
वक़्त की जादूगरी।
तो न रहती जेब खाली
रोज दीवाली रहे,
राह तकती द्वार पर
हर शाम घरवाली रहे ;
पर खरी कहने की आदत
छोड़ दूँ कैसे बुरी !
ना प्रमोशन में अटकते
ना ही इंक्रीमेंट में,
खा रहे होते मलाई
साहबों के टेन्ट में ;
किंतु गा पाए न स्तुति
जीभ अपनी बेसुरी।
बनके बातों के सिकंदर
लोग आगे जा रहे,
हम मदारी के बने बंदर
गुलाटी खा रहे;
क्या करूँ, झुकने न देती
रीढ़ की नाज़ुक धुरी।
- ओमप्रकाश तिवारी
(16 जनवरी, 2017)

चिरैया

सावधान हो विचर चिरैया
यहाँ घूमते बाज।
कदम-कदम पे मानुष रहते
फिर भी जग सुनसान,
पता न चलता कौन देवता
किसके मन हैवान ;
जाने कौन रोक दे आकर
कब तेरा परवाज़।
आसमान छूने का तू है
बैठी पाल जुनून,
लेकिन इस नगरी में चलता
जंगल का कानून ;
आज यहाँ कल वहाँ गिर रही
तुझ जैसों पे गाज।
देख चिरैया ! इस जंगल में
दिन में भी अँधियार,
अक्सर घात लगाकर अपने
ही करते हैं वार ;
क्षण भर में देते बिगाड़ वो
जीवन भर का साज।
- ओमप्रकाश तिवारी

साजन अबकी चुनकर लाना...


साजन अबकी चुनकर लाना
ऐसी इक सरकार ।
जो जनता की फ़िक्र करे, हो
थोड़ी जिम्मेदार ।।
जो भी आए, दे गरीब को
रोटी-भाजी-दाल,
नहीं माँगते हम घी चुपड़ी
ना चहिए तर माल;
उसे जिताकर हम ना सोचें
हुई हमारी हार।
लैपटॉप के सुंदर सपने
ना दोहराए जायँ,
ना चंदा पर ले जाने की
झूठी कसमें खायँ;
पढ़-लिखकर भी घर का बच्चा
घूमे ना लाचार।
वादा छत का भले निभे ना
किंतु न छीनें फूस,
ना दें वो खैरात हमें पर
पड़े न देना घूस ;
दो पड़ोसियों बीच न बोएं
आकर वो अंगार।
- ओमप्रकाश तिवारी