Wednesday, May 31, 2017

शिव तुम्हारे तांडव का ...


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शिव तुम्हारे तांडव का
मंच फिर तैयार है।
दिनदहाड़े रोज दिखता
हो रहा सीता हरण,
द्रौपदी के कक्ष तक
पहुँचे दुःशासन के चरण;
नेत्र खोलो तीसरा प्रभु
हो रहा अँधियार है।
बर्फवाली वादियों में
जल रहे चीनार हैं,
चिनगियाँ कैलास तक
पहुँची तुम्हारे द्वार हैं;
योग निद्रा से नहीं होना
प्रभू निस्तार है।
इंद्र पद का गर्व सत्ता
साथ ले आती यहां,
प्राप्ति-सिंहासन प्रजा का
दर्द बिसराती यहां;
ये धरा अब असुर कुल का
चाहती संहार है।
- ओमप्रकाश तिवारी
30 मई, 2017
सुबह - 9.50 बजे

लिखा पुत्र का नाम


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माँ की हत्या हुई,
पुत्र का लिखा रपट में नाम !
अरे हम कहाँ जा रहे राम !!
मिला न तन का दूध,
मिला ना आँचल वाला प्यार;
आँख खुली तो गोद धाय की,
जुड़ें कहाँ से तार ?
दिख रहा है प्रभुजी परिणाम ।
निकले सुबह शाम को लौटे,
मुलाकात दो जून;
घर पर भी स्मार्ट फ़ोन की
लत से दुनिया सून ।
चले कब उसकी उँगली थाम ?
सुबह-शाम पैसा, बस पैसा,
दिखे न कहीं सुकून;
रिश्ते-नाते बर्फ हो गए,
बचा गर्म बस खून।
सोचिए, क्या होगा अंजाम !
- ओमप्रकाश तिवारी