Monday, February 13, 2017

क्या कभी सोते समय

क्या कभी सोते समय
सोचा कि दिन में क्या किया ?
जब सुबह निकले तो
चौराहे पे घायल था पड़ा,
चंद पल पहले ही उस पर
एक ट्रक था जा चढ़ा ;
आपने देखा नज़र भर
और आगे बढ़ गए,
एक क्षण को भी न सोचा
वो मरा है या जिया !
दोपहर को लंच में
कुलचे गरम खाते रहे,
सामने बच्चे पसारे
हाथ रिरियाते रहे ;
ना दिखी छवि आपके
अपनों की उनमें आपको,
याद करिए, एक भूखे को
निवाला कब दिया !
शाम को नुक्कड़ पे लड़की
मनचले छेड़ा किए,
करके अनदेखी निकल आए थे
सिर टेढ़ा किए ;
नाज़ तो करते बहुत हो
स्वयं की मर्दानगी पर,
फिर बताओ उस बखत क्यों
मुंह तुम्हारा था सिया !
- ओमप्रकाश तिवारी

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