Thursday, December 22, 2016

हम भारत के उद्दंड पूत

हम भारत के
उद्दंड पूत।
जो मर्जी
वो करना चाहें,
अच्छी लगतीं
बिगड़ी राहें ;
कोई अंकुश
बर्दाश्त नहीं,
कुछ कह दो तो
निकलें आहें।
है अहंकार
हममें अकूत।
है फिक्र हमें
मक्कारों की,
बस उल्टे-सीधे
नारों की,
कर्तव्यों की
किसको चिंता,
बस बात करें
अधिकारों की।
रग-रग में बहता
दिखे झूठ।
भाती हमको
अरि की स्तुति,
हो जाय भले
अपनी दुर्गति,
चाहे जितनी
धिक्कार मिले,
पर नहीं सुधरती
अपनी मति।
हम अपना ही घर
रहे लूट।
- ओमप्रकाश तिवारी

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