Thursday, December 22, 2016

हम भारत के उद्दंड पूत

हम भारत के
उद्दंड पूत।
जो मर्जी
वो करना चाहें,
अच्छी लगतीं
बिगड़ी राहें ;
कोई अंकुश
बर्दाश्त नहीं,
कुछ कह दो तो
निकलें आहें।
है अहंकार
हममें अकूत।
है फिक्र हमें
मक्कारों की,
बस उल्टे-सीधे
नारों की,
कर्तव्यों की
किसको चिंता,
बस बात करें
अधिकारों की।
रग-रग में बहता
दिखे झूठ।
भाती हमको
अरि की स्तुति,
हो जाय भले
अपनी दुर्गति,
चाहे जितनी
धिक्कार मिले,
पर नहीं सुधरती
अपनी मति।
हम अपना ही घर
रहे लूट।
- ओमप्रकाश तिवारी

यहाँ कहाँ नोटों की थप्पी


दो कमरे का घर है अपना
दो ही रोटी का आहार,
यहाँ कहाँ नोटों की थप्पी
जिसकी खातिर हाहाकार।
खटते रहें तीस दिन बाबू
तो वेतन का मिले जुगाड़,
चर्बी चढ़ना दूर यहाँ तो
सस्ते में पिसता है हाड़ ;
रोएं जिनके घर हरियाली
सूखे यहाँ खेत-फरवार ।
झंख रहे हैं राय बहादुर
जिनका डूब गया संसार,
धनिया-गोबर-होरी जैसों
पर तो रहता चढ़ा उधार ;
रोएं वे जो खून चूसकर
लेते दिखे न कभी डकार।
ऊपर से चलती हैं गंगा
पर गरीब तक पहुँचे बूँद,
सब पानी पी जाने वालों
के घर में अब लगी फफूँद ;
परसेंटेज में बात करें जो
आज उन्हीं को चढ़ा बुखार।
- ओमप्रकाश तिवारी

तू विष प्याला पी

हमको दे दे दूध मलाई
तू विष प्याला पी।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे
ये है कथन पुराना,
भले आधुनिक हुए बहुत पर
बदला नहीं तराना;

मीठा-मीठा गप्प किए जा
कड़ुवा-कड़ुवा छी।

हमें चाहिए चांद सितारे
लेकिन सब घर बैठे,
गरम हवा चल जाय जरा सी
तो बाबू जी ऐंठे ;

कर्ज चढ़े तो चढ़ने दे पर
तू पीता जा घी।

देश बदलना चहिए, बिल्कुल
हो वह स्वर्ग सरीखा,
किंतु न बाबू जी बदलेंगे
अपना तौर-तरीका;

भगतसिंह को जने पड़ोसी
हम पीटें ताली।

(23 दिसंबर, 2016)