Tuesday, June 30, 2015

गिरी बोरवेल में रेहाना


ऊँ
--
गिरी बोरवेल
में रेहाना !

गड्ढा है पतला व गहरा,
वहां नहीं था कोई पहरा;
खेल रही थी नन्हीं बच्ची
गई उसी गड्ढे में भहरा ।

है अपनी पूरी तैयारी
चार कैमरेवाली गाड़ी
टीवी छोड़
कहीं मत जाना !

सुस्ती पुलिस फोर्स पर छाई,
एनडीआरएफ देर से आई;
बोरिंग मालिक की कर दी है
ग्रामीणों ने खूब पिटाई।

अपनी भी कुछ है मजबूरी
अब सचमुच है बहुत जरूरी
कॉमर्शियल ब्रेक
दिखलाना !

दुआ निकालो दिल से सच्ची,
ख़तरे में है प्यारी बच्ची;
सिमपैथी में सेंध लगाना
बहुत बड़ी है माथापच्ची।

लगा रहे ग़र गिरना-पड़ना
बढ़ती दर्शकगण की गणना
चहिए खाली
एक बहाना !
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, June 22, 2015

पितृ दिवस

ऊँ
....
सुबह अचानक 
बेटे ने जब
छुए हमारे पावं।
नयन तरल हो उठे
द्रवित था हृदय
रुद्ध आवाज,
सोच रहा था
पश्चिम से क्यों
सूरज निकला आज;
मन में सोचा
खेल रहा है
पैसे के हित दावं।
ना होली-ना दीवाली
ना और
कोई त्यौहार,
जन्मदिवस
में बाकी इसके
अभी महीने चार;
फिर कैसे
इस जेठ दुपहरी
दिखी बादली छावं।
तभी चाय की
चुस्की के संग
जब पलटा अखबार,
'पितृ दिवस' की
कुछ ख़बरों से
नयन हुए दो-चार;
तब समझा
नवपीढ़ी की है
सही दिशा में नाव।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, June 19, 2015

चाहें बेला फूल


जीवन भर हम
रहे रोपते
केवल वृक्ष बबूल,
प्रत्युत्तर में
तो भी चाहें
सुंदर बेला फूल।

पौ फटने से
रात ढले तक
निजता ही निजता,
सिर्फ स्वचिंतन
में ही जीवन
जाता है छिजता ;

अपने से
बाहर की दुनिया
जाते हैं हम भूल।

सदा अहं को
पाला-पोसा
ना छोड़ा अभिमान,
अपनी सुविधा
के आगे, ना रहा
और कुछ ध्यान ;

प्रतिफल में
एकाकीपन
यूँ चुभता जैसे शूल।

गहन ईर्ष्या
की ज्वाला से
जब-जब धधके मन,
जलें पड़ोसी बाद
सुलगता
पहले निज कण-कण ;

फिर भी
समझ नहीं पाते हम
अपने दुःख का मूल।

- ओमप्रकाश तिवारी