Sunday, October 18, 2015

कितना नीचे और गिरोगे ?

कितना नीचे और गिरोगे ?
च्च...च्च...च्च !
च्च...च्च...च्च !!

मर्यादा का ज्ञान रहा, न
रिश्तों का ही भान रहा
पापों के दुष्परिणामों का
न तुमको अनुमान रहा

ईश्वर से भी नहीं डरोगे ?
च्च...च्च...च्च !
च्च...च्च...च्च !!

मानवता को गोड़ रहे हो
कच्ची कलियाँ तोड़ रहे हो
तुम जैसे ही दुष्ट नराधम
इस समाज के कोढ़ रहे हो

कब तक सीताहरण करोगे ?
च्च...च्च...च्च !
च्च...च्च...च्च !!

रोज तुम्हें जाता है कोसा
किस पर दुनिया करे भरोसा
तुम जैसे कलि दैत्य रूप को
भला किसलिए जाए पोसा

सबकी नजरों में अखरोगे ।
च्च...च्च...च्च  !
च्च...च्च...च्च !!

- ओमप्रकाश तिवारी 

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