ॐ
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काश !
अंतस तक पहुँचती
उष्मा तेरी किरण की।
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काश !
अंतस तक पहुँचती
उष्मा तेरी किरण की।
क्या फ़रक पड़ता
रहो तुम
उत्तरायण-दक्षिणायण,
हाथ हो रोजी
सुबह की,
रात को रोटी नारायण ;
रहो तुम
उत्तरायण-दक्षिणायण,
हाथ हो रोजी
सुबह की,
रात को रोटी नारायण ;
कामना
हमको नहीं है
भीष्म से पावन मरण की।
हमको नहीं है
भीष्म से पावन मरण की।
तुम मकर में जा रहे हो
तो हुआ
उत्सव हमारा,
हम मकड़जालों में उलझे
ढूंढते
अपना किनारा ;
तो हुआ
उत्सव हमारा,
हम मकड़जालों में उलझे
ढूंढते
अपना किनारा ;
स्वयं सारे
वस्त्र खोकर
चाह रखते आवरण की।
वस्त्र खोकर
चाह रखते आवरण की।
देव तुम जानो
तुम्हारी गति-दिशा
आवागमन,
चाहते हम सिर्फ
अपनी मति मलिनता
का शमन ;
तुम्हारी गति-दिशा
आवागमन,
चाहते हम सिर्फ
अपनी मति मलिनता
का शमन ;
रुक सके तो
रोक दो गति
आचरण के ही क्षरण की।
- ओमप्रकाश तिवारी
रोक दो गति
आचरण के ही क्षरण की।
- ओमप्रकाश तिवारी
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