Tuesday, May 27, 2014

हम कैसे माने कि --

माना कि आप आज
दुनिया में छा गए,
हम कैसे मानें कि
अच्छे दिन आ गए।

शेयरों के भाव भले
आसमान छू रहे,
सूर्य-चांद-तारे भी
आँगन में चू रहे ;

भाजी के भाव मगर
नीचे न आ गए,
तो कैसे मानें कि
अच्छे दिन आ गए।

हो सकता है सुधरें
सोने के स्वर ऐंठे,
संभव है रुपया भी
डॉलर को चढ़ बैठे ;

लेकिन हम दाल-भात
जब तक न पा गए,
तो कैसे मानें कि
अच्छे दिन आ गए।

बिटिया की शादी में
बजनी है शहनाई,
सिर चढ़के नाच रही
है निर्दय महंगाई;

अरमानों की पूँजी
टैक्स मियाँ खा गए,
हम कैसे मानें कि
अच्छे दिन आ गए।

दिल्ली में दीवाली
जैसी हर शाम है,
दुनिया भी आ करके
ठोंकती सलाम है ;

जब तक न दिखें
गाँव-गाँव जगमगा गए,
हम कैसे मानें कि
अच्छे दिन आ गए।

(27 मई, 2014)


No comments:

Post a Comment