Wednesday, May 21, 2014

राजपथ

राजपथ पर 
कंटकों की 
क्यारियाँ हैं ।

खूबसूरत स्वप्न सा 
चरितार्थ है,
किंतु इसका गूढ़ कुछ
निहितार्थ है।

चल संभलकर
राह में
दुश्वारियां हैं।

सुख नहीं सत्ता सदा
विषपान है,
जो इसे हल्के से ले
नादान है।

विवादों से
इसकी पक्की
यारियाँ हैं।

जो तुम्हें कहना था
वो तुम कह चुके,
जो किले मुश्किल थे
वो भी ढह चुके।

अब नया
गढ़ने की
जिम्मेदारियाँ हैं।

जो सगे उनसे भी
है प्रतिद्वंद्विता,
रेस में शामिल जिन्हें
कहते पिता।

लोग तकते
अपनी-अपनी
बारियाँ हैं।

- ओमप्रकाश तिवारी

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