Friday, November 29, 2013

क्षमा करो सरदार

क्षमा करो सरदार
कहाँ से
लोहा लाएँ हम !

वर्षों पहले
बेच चुके हम
बाबा वाले बैल,
आज किराये
के ट्रैक्टर से
होते हैं सब खेल;

मुठिया पकड़
खेत में घूमे,
किसमें इतना दम !

न बढ़ई की
खट-खट गूँजे
न कुछ गढ़े लुहार,
जाने कब की
जंग खा चुकी
है कुदाल की धार;

भला चलाए
कौन फावड़ा,
कमर गई है जम !

दूध पाउडर का
लाते हैं
नहीं पालते भैंस,
आजी बिन
कंडा न पथता
घर में जलती गैस;

खुरपा-खुरपी
वाला भी अब
काम रह गया कम !

हाथ कबाड़ी
के बेचे सब
खेती के औजार,
अधिया पर
दे खेत शहर में
करते लोग बेगार;

पाले हैं
तो पाले रहिए,
आप प्रगति का भ्रम !

(29 नवंबर, 2013)

नोटः गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण हेतु देश भर से कृषि औजार इकट्ठा करने की बात हो रही है। इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए सरदार पटेल से क्षमा याचना सहित इस कविता का उद्भव हुआ है।


Saturday, November 9, 2013

त्राहिमाम्


त्राहिमाम् !प्रभु त्राहिमाम् !!

देखा आज़ादी का अनुभव,
देखा नेताओं का उद्भव,
तब रानी एक अकेली थी,
अब राजा आते हैं नव-नव ;

हम तो जस के तस हैं गुलाम !

कलम बंद कर बैठा अफसर,
ऊँघ रहा है सारा दफ्तार,
गाँधी के दर्शन हो जाएँ,
तो चपरासी ही ताकतवर ;

हाउसफुल नंगों से हमाम !

पति-पत्नी का परिवार बचा,
वह भी तूने क्या खूब रचा,
दोनों मोबाइल से चिपके,
हैं उसपर उँगली रहे नचा ;

इंटरनेट से होती सलाम !


(09 नवंबर, 2013)

अखबारों में समाचार है

अखबारों में समाचार है,
उल्लू बैठा डार-डार है ।

देश दिखाई देता दुखिया,
लूट सके जो वो है सुखिया,
लाचारी में शीश झुकाए,
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया ;

चुने हुए राजा-रानी से,
लोकतंत्र ही शर्मसार है ।

एक समय था गुल्ली-डंडा,
खेल बना अब चोखा धंधा,
रहो खेलते मनमानी से,
जब तक गले पड़े न फंदा;

राजनीति के खिलाड़ियों से,
खेल स्वयं ही गया हार है।

विकीलीक्स का नया खुलासा,
सुनकर होती बड़ी निराशा,
चौसर भले बिछी हो अपनी,
पश्चिम फेंक रहा है पासा;

शायद इसीलिए दिखती अब,
लोकतंत्र की मुड़ी धार है।

( 09 नवंबर, 2013)