Wednesday, February 27, 2013

अर्थ

अर्थ,
तुम्हारे
कितने अर्थ !

ताकि खर्च
चले सुनियोजित
बजट
बनाते हैं हर साल
बिना बजट के
घर में भी तो
चद्दर बन जाती
रूमाल

अर्थ जेब में
तो हम राजा
वरना सब कुछ
लगता व्यर्थ !

मिले
माह की
मेहनत पर जो
वेतन है
वह शब्द सटीक
लेने वाला
दान समझता
देने वाला
समझे भीख

इसी अर्थ
की ख़ातिर बाबू
हो जाते हैं
कई अनर्थ !

सुविधाशुल्क
कभी कहलाता
कभी कहा जाता
उत्कोच
भला नाम में
क्या रखा है
अपनी सुविधा
अपनी सोच

स्थायी कब रहा
अर्थ है
ये तो रहता
सदा तदर्थ !

( 28 फरवरी, 2013 - टेलीविजन पर राष्ट्रीय बजट की प्रस्तुति देखते हुए) 

Wednesday, February 20, 2013

मोक्ष-मुक्ति में बात कहाँ वह

मोक्ष-मुक्ति में बात कहाँ वह
जो नश्वर संसार में है

कौशल्या देवकी यशोदा
खेले गोद राम से योद्धा
वंचित रहकर इस ममता से
बना आज तक कौन पुरोधा

देवलोक में बात कहाँ वह
जो इक माँ के प्यार में है

मृग के लिए सिया का अड़ना
रुक्मिणि का राधा से लड़ना
पार्वती का शिव की खातिर
कई-कई जन्मों में पड़ना

उर्वशियों में बात कहाँ वह
जो प्रिय की मनुहार में है

खाना छीन के चना-चबेना
फिर दो लोक मित्र को देना
दुर्योधन के लिए कर्ण का
भाई के वध का व्रत लेना

इंद्रसभा में बात कहां जो
मित्रों से तकरार में है

( 21 फरवरी, 2013 - कुंभ, अयोध्या और काशी की यात्रा से लौटकर)