Monday, August 26, 2013

सोने की चिड़िया के बच्चे


सोने की चिड़िया के बच्चे ।

संसद से निकला परवाना,
मुफ़्त मिलेगा सबको खाना;
कामकाज की करो न चिंता,
पड़े हाथ न पाँव हिलाना ।

सोचो हम हैं कितने अच्छे ।

गरज नहीं पढ़ने-लिखने की,
गरज नहीं कुछ भी सिखने की;
प्रतियोगी दुनिया में हमको,
गरज नहीं बिल्कुल टिकने की ।

गढ़ें सिर्फ़ बातों के लच्छे ।

दे सकता है जो आश्वासन,
वही करेगा हम पर शासन;
लेकर वोट भले ही हमसे,
करवाए हमको शीर्षासन ।

गुणा-भाग में बिल्कुल कच्चे । 

भरे हुए भंडार सभी हैं,
कागज पर अधिकार सभी हैं ;
किंतु निकम्मों की बस्ती में ,
लगते ये बेकार सभी हैं । 

बार-बार खाते हैं गच्चे । 

(27 अगस्त, 2013) 



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