सच कहता हूँ
गाँव हमारा
खद्दर ने बरबाद किया ।
असलम के संग
गुल्ली-डंडा
खेल-खेल बचपन बीता,
रामकथा वाले
नाटक में
रजिया बनती थी सीता;
मंदिर की ईंटें
रऊफ के भट्ठे
से ही थी आईं,
पंडित थे परधान
उन्हीं ने काटा
मस्जिद का फीता ।
गुटबंदी को
खद्दरवालों
ने आकर आबाद किया ।
रोज़े तो
सलीम रखता था
हम करते थे इफ़्तारी,
शीर खूरमा
खिला खिला कर
थकतीं चाची बेचारी ;
उधर पँजीरी
के प्रसाद का
वह भी तो था दीवाना,
थी मशहूर
मुहल्ले भर में
उसकी और मेरी यारी ।
सिवईं में
नीबू निचोड़कर
आज बेमज़ा स्वाद किया ।
हाशिम चाचा
के बेटों से
था अपना भाईचारा,
बप्पा उनसे
अपने सुखदुख
का करते थे बँटवारा ;
शादी का जोड़ा
व चूड़ी
उनके घर से आती थी,
आतिशबाजी
की रंगत भी
जमती थी उनके द्वारा ।
तिल को ताड़
बना कुछ लोगों
ने है खड़ा विवाद किया ।
(13 अगस्त, 2013)
गाँव हमारा
खद्दर ने बरबाद किया ।
असलम के संग
गुल्ली-डंडा
खेल-खेल बचपन बीता,
रामकथा वाले
नाटक में
रजिया बनती थी सीता;
मंदिर की ईंटें
रऊफ के भट्ठे
से ही थी आईं,
पंडित थे परधान
उन्हीं ने काटा
मस्जिद का फीता ।
गुटबंदी को
खद्दरवालों
ने आकर आबाद किया ।
रोज़े तो
सलीम रखता था
हम करते थे इफ़्तारी,
शीर खूरमा
खिला खिला कर
थकतीं चाची बेचारी ;
उधर पँजीरी
के प्रसाद का
वह भी तो था दीवाना,
थी मशहूर
मुहल्ले भर में
उसकी और मेरी यारी ।
सिवईं में
नीबू निचोड़कर
आज बेमज़ा स्वाद किया ।
हाशिम चाचा
के बेटों से
था अपना भाईचारा,
बप्पा उनसे
अपने सुखदुख
का करते थे बँटवारा ;
शादी का जोड़ा
व चूड़ी
उनके घर से आती थी,
आतिशबाजी
की रंगत भी
जमती थी उनके द्वारा ।
तिल को ताड़
बना कुछ लोगों
ने है खड़ा विवाद किया ।
(13 अगस्त, 2013)
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