Tuesday, August 27, 2013

कहानी परियों की

बिटिया
सुनती नहीं
कहानी परियों की ।

गुड़िया से न प्यार
न उसके दूल्हे से,
न कोई अनुराग है
चकिया-चूल्हे से ;
बाद जनम के
कितने सावन बीत गए,
कभी न देखा
उसे झूलते झूले से  ।

करती है
वह बात
उड़नतश्तरियों की ।

पढ़ती है लिखती है
कॉलेज जाती है,
कम्प्यूटर पर
उँगली तेज चलाती है ;
दादी माँ की सभी
हिदायत सुन-सुन कर,
हौले से जा पास
उन्हें समझाती है ।

अर्जी देती
बड़ी-बड़ी
नौकरियों की ।

है उसमें विश्वास
गगन छू लेने का,
खुद होकर मजबूत
बहुत कुछ देने का ;
तूफानों में भी
कश्ती फँस जाए तो,
अपने दम पर
साहिल तक खे लेने का ।

है मोहताज
नहीं बेटी
देहरियों की ।

(28 अगस्त, 2013) 

रुपैया रोता है

डॉलर चढ़ता जाय
रुपैया रोता है।

कई बरस से
हार माँगती घरवाली,
हम टरकाते रहे
गई न कंगाली ;

सोना इकतीस पार
लगाए गोता है ।

चाँदी का रुपया
बाबा ले आते थे,
थोड़ा सा कर खर्च
बचा ले जाते थे ;

आज उसी चांदी का
दिखता टोटा है ।

देखे शेयर दलाल
पेट मोटे वाले,
हैं कौड़ी के तीन
आज लटके ताले ;

बिकने को घर का भी
थाली - लोटा है ।

पगड़ी-लुंगी
जबतक देश संभालेगी,
अर्थव्यवस्था को
दीमक सा चालेगी ;

भली चुप्प जब अपना
सिक्का खोटा है।

( 27 अगस्त, 2013)



Monday, August 26, 2013

सोने की चिड़िया के बच्चे


सोने की चिड़िया के बच्चे ।

संसद से निकला परवाना,
मुफ़्त मिलेगा सबको खाना;
कामकाज की करो न चिंता,
पड़े हाथ न पाँव हिलाना ।

सोचो हम हैं कितने अच्छे ।

गरज नहीं पढ़ने-लिखने की,
गरज नहीं कुछ भी सिखने की;
प्रतियोगी दुनिया में हमको,
गरज नहीं बिल्कुल टिकने की ।

गढ़ें सिर्फ़ बातों के लच्छे ।

दे सकता है जो आश्वासन,
वही करेगा हम पर शासन;
लेकर वोट भले ही हमसे,
करवाए हमको शीर्षासन ।

गुणा-भाग में बिल्कुल कच्चे । 

भरे हुए भंडार सभी हैं,
कागज पर अधिकार सभी हैं ;
किंतु निकम्मों की बस्ती में ,
लगते ये बेकार सभी हैं । 

बार-बार खाते हैं गच्चे । 

(27 अगस्त, 2013) 



Sunday, August 25, 2013

राजा जी की पाँचो उँगली

राजा जी की
पाँचो उँगली
घी में डूबी जायं ।

डूबे नगर खेत उतिराएं
जब से आई बाढ़,
जुम्मन-जुगनू सबकी ख़ातिर
बैरी हुआ असाढ़ ;

उड़नखटोले
पर राजा जी
जलदर्शन को जायं ।

सूखे सारे ताल तलैया
सूखीं नदियां-झील,
सूखे सब आँखों के आँसू
ऐश कर रहीं चील ;

राजा के घर
नदी दूध की
रानी इत्र नहायं ।

सब्जी चढ़ी बाँस के ऊपर
दाल करे हड़ताल,
परजा के चेहरे हैं सूखे
हड्डी उभरे गाल ;

राजकुमारी
वजन घटाने
की औषधियाँ खायं ।

( 24 अगस्त, 2013)


कलावती के गाँव

कलावती के
गाँव पधारे राजा जी ।

धूल उड़ाती आईं
दो दर्जन कारें,
आगे-पीछे
बंदूकों की दीवारें ;
चमक रहा था
चेहरा जैसे संगमरमर,
गूँज रही थीं
गगन फाड़ती जयकारें ;

धन्य हो गया
दुखिया का दरवाजा जी ।

गाड़ी में से उतरी
पानी की टंकी,
तेल-मसाला-आटा
सारी नौटंकी ;
जला कई दिन बाद
कला के घर चूल्हा,
उड़ी गाँव में खुशबू
बढ़िया भोजन की ;

तृप्त हुए वो
करके भोजन ताजा जी ।

अच्छी पिकनिक रही
प्रभावित थी परजा,
कलावती का हुआ
एक दिन का हर्जा ;
सुख-दुख तो सब
आते - जाते रहते हैं,
कौन चुका पाया आखिर
किसका कर्जा ;

अखबारों ने
खूब बजाया बाजा जी ।

(24 अगस्त, 2013)

Wednesday, August 14, 2013

आज पंद्रह अगस्त है

उठो उठो श्रीमान
आज पंद्रह अगस्त है ।

सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी,
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी ;

सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है ।

अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा,
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा

लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है ।

लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा,
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा ;

नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है ।

भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू,
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू ;

कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है।

(15 अगस्त, 2013)

Tuesday, August 13, 2013

बदला मेरा गाँव रे


बदले लोग
जमाना बदला
बदला मेरा गाँव रे ।

भाई का
प्रवेश वर्जित है
भाई की ही देहरी में,
पट्टीदारों से
होती है अब
जय राम कचहरी में ;

बंद हो गई
दुआ - पैलगी
भारी छूना पाँव रे ।

नहीं अखाड़ा
कुश्ती - बैठक
ना होती अब दौड़ है,
इक -दूजे की
उन्नति खटके
गिरने की होड़ है ;

रेफ़री थानेदार
दफ़ाओं से
खेलें सब दाँव रे ।

मुंशी जी की
मार अभी तक
बाबूजी को याद है,
वो कहते हैं
उसके कारण
घर उनका आबाद है ;

अब शिक्षक
खुद बचते घूमें
दिखे अधर में नाव रे । 

भरी दुपहरी
अजनबियों की
गुड़ संग बुझती प्यास थी,
आधी रात
बटोही आए
दो रोटी की आस थी ;

सिमट गया घर
रिश्तेदारों
की ख़ातिर न ठाँव रे ।

( 14 अगस्त, 2013) 

खद्दर

सच कहता हूँ
गाँव हमारा
खद्दर ने बरबाद किया ।

असलम के संग
गुल्ली-डंडा
खेल-खेल बचपन बीता,
रामकथा वाले 
नाटक में
रजिया बनती थी सीता;
मंदिर की ईंटें
रऊफ के भट्ठे
से ही थी आईं,
पंडित थे परधान
उन्हीं ने काटा
मस्जिद का फीता ।

गुटबंदी को
खद्दरवालों
ने आकर आबाद किया ।

रोज़े तो
सलीम रखता था
हम करते थे इफ़्तारी,
शीर खूरमा
खिला खिला कर
थकतीं चाची बेचारी ;
उधर पँजीरी
के प्रसाद का
वह भी तो था दीवाना,
थी मशहूर
मुहल्ले भर में
उसकी और मेरी यारी ।

सिवईं में
नीबू निचोड़कर
आज बेमज़ा स्वाद किया ।

हाशिम चाचा
के बेटों से
था अपना भाईचारा,
बप्पा उनसे
अपने सुखदुख
का करते थे बँटवारा ;
शादी का जोड़ा
व चूड़ी
उनके घर से आती थी,
आतिशबाजी
की रंगत भी
जमती थी उनके द्वारा ।

तिल को ताड़
बना कुछ लोगों
ने है खड़ा विवाद किया ।


(13 अगस्त, 2013)

Thursday, August 1, 2013

कौरव कुल

कौन कह रहा
द्वापर में ही
कौरव कुल का नाश हुआ ।

वही पिताश्री
बिन आँखों के
माताश्री
पट्टी बाँधे,
ढो-ढो
पुत्रमोह की थाती
दुखते दोनों
के काँधे ;

उधर न्याय की
आस लगाये
अर्जुन सदा निराश हुआ ।

नकुल और
सहदेव सरीखे
भाई के भी
भाव गिरे,
दुर्योधन जी
राजमहल में
दुस्साशन से
रहें घिरे ;

जिसमें जितने
दुर्गुण ज्यादा
वह राजा का ख़ास हुआ ।

चालें वही
शकुनि की दिखतीं
चौपड़ के
नकली पाशे,
नहीं मयस्सर
चना-चबेना
दूध - मलाई
के झांसे ;

चंडालों की
मजलिस  में जा
सदा युधिष्ठिर दास हुआ ।

भीष्म - द्रोण
सत्ता के साथी
अपने-अपने
कारण हैं,
रक्षाकवच
नीति के सबने
किये बख़ूबी
धारण हैं ;

सच कहने पर
चचा विदुर को
दिखे आज वनवास हुआ ।

(1 अगस्त, 2013)