Monday, June 10, 2013

क्या लिखोगे

बिक चुकी है
रोशनाई,
क्या लिखोगे !

रहनुमाओं
की पलक
पर है नजर,
अपने हिस्से
की मलाई
का भी डर ;

खान कोयले की
कहाँ
उजले दिखोगे !

मत गुमाँ पालो
कि हैं
अखबार में,
सोच लो
हम भी
खड़े बाजार में ;

बिक रहे हैं सब
मियाँ तुम
कब बिकोगे !

साथ में
सत्ता के
चलना है जरूरी ;
लो बना
थोड़ी सी
आदर्शों से दूरी ;

बात छोटी सी है
आखिर
कब सिखोगे !

झूठ वालों
का सफर
निद्वंद्व है,
सत्य का
हुक्का
व पानी बंद है;

तुम भला
तूफान में
कब तक टिकोगे !


(10 जून, 2013)

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