Monday, June 24, 2013

जल है

पर्वत से
नयनों तक
जल है।

मेघ फटे
अब
हृदय फट रहा,
बिछुड़ों
के ही
नाम रट रहा;

पुनर्मिलन को
जिया
विकल है।

मचल उठी
गंगा
की धारा,
छीना
जीवन का
उजियारा;

सब अपने
कर्मों का
फल है ।

नेत्र तीसरा
शिव ने
खोला,
शायद तभी
हिमालय
डोला ;

जो कहलाता
सदा
अचल है ।

( 24 जून, 2013)

Monday, June 10, 2013

क्या लिखोगे

बिक चुकी है
रोशनाई,
क्या लिखोगे !

रहनुमाओं
की पलक
पर है नजर,
अपने हिस्से
की मलाई
का भी डर ;

खान कोयले की
कहाँ
उजले दिखोगे !

मत गुमाँ पालो
कि हैं
अखबार में,
सोच लो
हम भी
खड़े बाजार में ;

बिक रहे हैं सब
मियाँ तुम
कब बिकोगे !

साथ में
सत्ता के
चलना है जरूरी ;
लो बना
थोड़ी सी
आदर्शों से दूरी ;

बात छोटी सी है
आखिर
कब सिखोगे !

झूठ वालों
का सफर
निद्वंद्व है,
सत्य का
हुक्का
व पानी बंद है;

तुम भला
तूफान में
कब तक टिकोगे !


(10 जून, 2013)

Thursday, June 6, 2013

सूर्य से नजरें मिलाकर

सूर्य से
नजरें मिलाकर
बात करना चाहता हूँ ।

तेज है उसका प्रबल
इस बात का
अहसास है,
तपन में
महसूस होती
जानलेवा त्रास है;

अनुसरण
सूरजमुखी का
फिर भी करना चाहता हूं ।

जानता हूँ
सात घोड़ोंवाला
रथ भी खास है,
राजपथ सा
रौंदता दिखता
वो नित आकाश है ;

भव्यता के
इस बवंडर
से उबरना चाहता हूँ ।

रश्मियों से बनी
वल्गा, हाथ में
निज थाम कर,
हौसले को
स्वयं अपने
कोटि-कोटि प्रणाम कर ;

सारथी बन
साथ उसके
मैं विचरना चाहता हूँ ।

( 06 जून, 2013)