मूल्य बिकते
कींमतों के
चढ़ रहे बाजार में ।
लोग बौने हैं
मगर
लंबी हुईं परछाइयाँ,
हैं शिखर पर
किंतु चारों ओर
दिखतीं खाइंयाँ ।
कल तलक
आदर्श थे जो,
आज कारागार में ।
है लगी
कीमत सभी की
बोल का भी मोल है,
जो बिके
वो ही खबर है
और सब बेमोल है ।
इश्तेहारों में
दबी, दिखती
खबर अखबार में ।
विश्व के
एकीकरण का
स्वप्न सब पाले हुए,
भाइयों के साथ
भोजन
की रसम टाले हुए ।
जल रहे हैं
चार चूल्हे,
एक ही परिवार में ।
ईद, होली
व दशहरा
या कि दीवाली रहे,
गले मिलना दूर
अब तो
जुबाँ भी खाली रहे ।
उँगलियों से
एक एसएमएस
भेजते त्यौहार में ।
(9 मई, 2013)
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