Wednesday, May 8, 2013

मूल्य बिकते

मूल्य बिकते
कींमतों के
चढ़ रहे बाजार में ।

लोग बौने हैं
मगर
लंबी हुईं परछाइयाँ,
हैं शिखर पर
किंतु चारों ओर
दिखतीं खाइंयाँ ।

कल तलक
आदर्श थे जो,
आज कारागार में ।

है लगी
कीमत सभी की
बोल का भी मोल है,
जो बिके
वो ही खबर है
और सब बेमोल है ।

इश्तेहारों में
दबी, दिखती
खबर अखबार में ।

विश्व के
एकीकरण का
स्वप्न सब पाले हुए,
भाइयों के साथ
भोजन
की रसम टाले हुए ।

जल रहे हैं
चार चूल्हे,
एक ही परिवार में ।

ईद, होली
व दशहरा
या कि दीवाली रहे,
गले मिलना दूर
अब तो
जुबाँ भी खाली रहे ।

उँगलियों से
एक एसएमएस
भेजते त्यौहार में ।

(9 मई, 2013)

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