Saturday, March 2, 2013

मध्य में हूँ, कहाँ जाऊँ

मध्य में हूँ
कहाँ जाऊँ ?

पेट खाली,
पर जुगाली
अब यही दस्तूर है,
दिन के संग-संग
रात पाली
किंतु दिल्ली दूर है ।

क्या निचोड़ूँ
क्या नहाऊँ

माह में बस
एक दिन के लिए
हम सुल्तान हैं,
शेष उन्तिस दिन तड़पते
जेब में
अरमान हैं ।

कैसे खाऊँ
क्या बचाऊँ ?

कंपनी के सेठ जी
हरदम लगे
नाराज हैं,
और घर पे
कामवाली बाइयों के
नाज हैं ।

किस तरह
सबको मनाऊँ ?

कर्ज लेकर
फ्लैट-बंगला, कर्ज से ही
कार है,
जो बचे वो
कर समझकर
काटती सरकार है ।

किस तरह
सपने सजाऊँ ?

( दो मार्च, 2013 - बजट के तीसरे दिन मध्य वर्ग की दशा का अनुभव करते हुए ) 

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