मध्य में हूँ
कहाँ जाऊँ ?
पेट खाली,
पर जुगाली
अब यही दस्तूर है,
दिन के संग-संग
रात पाली
किंतु दिल्ली दूर है ।
क्या निचोड़ूँ
क्या नहाऊँ
माह में बस
एक दिन के लिए
हम सुल्तान हैं,
शेष उन्तिस दिन तड़पते
जेब में
अरमान हैं ।
कैसे खाऊँ
क्या बचाऊँ ?
कंपनी के सेठ जी
हरदम लगे
नाराज हैं,
और घर पे
कामवाली बाइयों के
नाज हैं ।
किस तरह
सबको मनाऊँ ?
कर्ज लेकर
फ्लैट-बंगला, कर्ज से ही
कार है,
जो बचे वो
कर समझकर
काटती सरकार है ।
किस तरह
सपने सजाऊँ ?
( दो मार्च, 2013 - बजट के तीसरे दिन मध्य वर्ग की दशा का अनुभव करते हुए )
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