काश
कफन में होती
जेब !
मुश्किल से बनता है पैसा
करना पड़ता ऐसा-वैसा ,
मरता है जमीर घुटघुटकर
लगता लांछन कैसा-कैसा ;
इतनी कठिन
कमाई को भी,
देश समझता है
क्यूँ ऐब !
राजनीति बर्रों का छत्ता
यूँ ही न मिल जाती सत्ता,
जेल-बेल का लंबा चक्कर
उड़ता है गाँधी का पत्ता ;
फिर भी
मेरा काम आपको,
लगता है
सौ टका फरेब !
जो आया है उसको जाना
रह जाना है यहीं खजाना,
लिखवा कर लाया हर मानुष
अपने हिस्से का हर दाना ;
सपनों में
आती है फिर भी,
लाल-हरे
नोटों की खेप !
( एक मार्च, 2013)
कफन में होती
जेब !
मुश्किल से बनता है पैसा
करना पड़ता ऐसा-वैसा ,
मरता है जमीर घुटघुटकर
लगता लांछन कैसा-कैसा ;
इतनी कठिन
कमाई को भी,
देश समझता है
क्यूँ ऐब !
राजनीति बर्रों का छत्ता
यूँ ही न मिल जाती सत्ता,
जेल-बेल का लंबा चक्कर
उड़ता है गाँधी का पत्ता ;
फिर भी
मेरा काम आपको,
लगता है
सौ टका फरेब !
जो आया है उसको जाना
रह जाना है यहीं खजाना,
लिखवा कर लाया हर मानुष
अपने हिस्से का हर दाना ;
सपनों में
आती है फिर भी,
लाल-हरे
नोटों की खेप !
( एक मार्च, 2013)
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