अर्थ,
तुम्हारे
कितने अर्थ !
ताकि खर्च
चले सुनियोजित
बजट
बनाते हैं हर साल
बिना बजट के
घर में भी तो
चद्दर बन जाती
रूमाल
अर्थ जेब में
तो हम राजा
वरना सब कुछ
लगता व्यर्थ !
मिले
माह की
मेहनत पर जो
वेतन है
वह शब्द सटीक
लेने वाला
दान समझता
देने वाला
समझे भीख
इसी अर्थ
की ख़ातिर बाबू
हो जाते हैं
कई अनर्थ !
सुविधाशुल्क
कभी कहलाता
कभी कहा जाता
उत्कोच
भला नाम में
क्या रखा है
अपनी सुविधा
अपनी सोच
स्थायी कब रहा
अर्थ है
ये तो रहता
सदा तदर्थ !
( 28 फरवरी, 2013 - टेलीविजन पर राष्ट्रीय बजट की प्रस्तुति देखते हुए)
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