Friday, January 11, 2013

यूँ ही नहीं राम जा डूबे

यूँ ही नहीं
राम जा डूबे
सरजू जी के घाट !

दिन भर
राजपाट की खिटखिट
जनता के परवाने
मातहतों का
कामचोरापा, फिर
धोबी के ताने

लोग समझते
राजा जी तो
भोग रहे हैं ठाट !

था आसान कहां
त्रेता में भी
तब राज चलाना
शेर और बकरी
को पानी
एक घाट पिलवाना

ऊपर से
भरमाने वाले
कितने चारण-भाट !

हारे-थके
महल में पहुंचे
तो सूना संसार
सीता की
सोने की मूरत
दे सकती न प्यार

ऐसे में
क्षय होना ही था
वह व्यक्तित्व विराट !

(11 जनवरी, 2013)

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