दादा अबकी
लेकर आना
एक मारुति कार
सुबह-शाम
सासू की खिच-खिच
ननद सुनाए ताना
गए तीन दिन बीत
गया मुंह
नहीं एक भी दाना
नई आल्टो से कम
कुछ भी
नहीं इन्हें स्वीकार
बाबू जी तो सीधे-सादे
ज्यों
दाँतों बिच जीभ
लेकिन ये
मिट्टी के माधौ
फूटे मेरे नसीब
दिन कट जाता
काम-काज में
रात हुई दुश्वार
जान रही, तुम
हो तंगी में
भैया बेरोजगार
मुनिया की
शादी में भी अब
बरस बचे दो-चार
दिल पर पत्थर
रखकर लिक्खी
चिट्ठी है इस बार
( 27 नवंबर, 2012)
Tuesday, November 27, 2012
Thursday, November 15, 2012
ताकि सम रह सके हिसाब
ताकि सम रह सके हिसाब
दूर पड़े हैं अम्मा-बाबू
अपनी ममता पे रख काबू
सेवा कर पाना तो दूर
हम अपने सपनों में चूर
मुन्ना अपने संग रहेगा
मत देखो यह प्यारा ख्वाब
पड़ता जब ईश्वर से पाला
नाम जपें हम गिनकर माला
याद नहीं करते बिन स्वारथ
जब तक मिलता रहे पदारथ
इसी तरह से ऊपर वाला
रखता अपनी पूर्ण किताब
सबको लूटा और कमाया
नहीं मदद का हाथ बढ़ाया
न दुख-दर्द किसी का बांटा
बस पैसे से रिश्ता-नाता
बोया जिसने बीज बबूल
नहीं मिलेगा उसे गुलाब
( 16 नवंबर, 2012 )
दूर पड़े हैं अम्मा-बाबू
अपनी ममता पे रख काबू
सेवा कर पाना तो दूर
हम अपने सपनों में चूर
मुन्ना अपने संग रहेगा
मत देखो यह प्यारा ख्वाब
पड़ता जब ईश्वर से पाला
नाम जपें हम गिनकर माला
याद नहीं करते बिन स्वारथ
जब तक मिलता रहे पदारथ
इसी तरह से ऊपर वाला
रखता अपनी पूर्ण किताब
सबको लूटा और कमाया
नहीं मदद का हाथ बढ़ाया
न दुख-दर्द किसी का बांटा
बस पैसे से रिश्ता-नाता
बोया जिसने बीज बबूल
नहीं मिलेगा उसे गुलाब
( 16 नवंबर, 2012 )
Tuesday, November 13, 2012
माते, क्यों रूठी हो हमसे
माते ! क्यों रूठी हो हमसे ।
पहले हफ्ते देर से आना
दस दिन के भीतर चुक जाना
दूध और पेपरवाले को
कल आना, कहकर टरकाना ;
कैसे करूँ गुजारा कम से ।
जब आती राशन की बारी
ड्योढ़ी रहती सदा उधारी
नया नियम है घरवाली का
हफ्ते में दो दिन तरकारी ;
पाँव गए हैं जैसे थम से ।
बिल्कुल बंद घूमना-फिरना
भाव गैस के सुनकर गिरना
दूध-दही तो अय्याशी है
तेल-फुलेल चढ़े अब सिर ना;
जूझूँ महंगाई के तम से ।
(दीपावली के पर्व 13 नवंबर, 2012 को माँ लक्ष्मी से शिकायत करते हुए)
पहले हफ्ते देर से आना
दस दिन के भीतर चुक जाना
दूध और पेपरवाले को
कल आना, कहकर टरकाना ;
कैसे करूँ गुजारा कम से ।
जब आती राशन की बारी
ड्योढ़ी रहती सदा उधारी
नया नियम है घरवाली का
हफ्ते में दो दिन तरकारी ;
पाँव गए हैं जैसे थम से ।
बिल्कुल बंद घूमना-फिरना
भाव गैस के सुनकर गिरना
दूध-दही तो अय्याशी है
तेल-फुलेल चढ़े अब सिर ना;
जूझूँ महंगाई के तम से ।
(दीपावली के पर्व 13 नवंबर, 2012 को माँ लक्ष्मी से शिकायत करते हुए)
Monday, November 12, 2012
बहू चाहिए अफलातून
बहू चाहिए अफलातून ।
जैसी दद्दू के घर आई
जिस पर इतराती हैं ताई
कद-काठी में बिल्कुल वैसी
लेकिन ड्योढ़ी हो गोराई ;
जले देखकर सबका खून ।
पढ़ी-लिखी हो एम्मे पास
घर में लावे लाख-पचास
अगर मिले ऊँचे पदवाली
तो दहेज न चहिए खास ;
घूमे अमरीका रंगून ।
सिर पर डाले उल्टा पल्ला
उँगली में हीरे का छल्ला
उसकी फैशन स्टाइल पर
चर्चा करता रहे मुहल्ला ;
चम्मच को बोले स्पून ।
करे नौकरी वह सरकारी
साथ-साथ सब दुनियादारी
बच्चों के संग पति को पाले
घर की भी ले जिम्मेदारी;
रोटी भी सेंके दो जून ।
जैसी दद्दू के घर आई
जिस पर इतराती हैं ताई
कद-काठी में बिल्कुल वैसी
लेकिन ड्योढ़ी हो गोराई ;
जले देखकर सबका खून ।
पढ़ी-लिखी हो एम्मे पास
घर में लावे लाख-पचास
अगर मिले ऊँचे पदवाली
तो दहेज न चहिए खास ;
घूमे अमरीका रंगून ।
सिर पर डाले उल्टा पल्ला
उँगली में हीरे का छल्ला
उसकी फैशन स्टाइल पर
चर्चा करता रहे मुहल्ला ;
चम्मच को बोले स्पून ।
करे नौकरी वह सरकारी
साथ-साथ सब दुनियादारी
बच्चों के संग पति को पाले
घर की भी ले जिम्मेदारी;
रोटी भी सेंके दो जून ।
Saturday, November 10, 2012
घर एक बसा गोल
दिल्ली के दिल में घर
एक बसा
गोल ।
बच्चों से भरा-पुरा
लंबा परिवार,
आपस में झगड़ें सब
मुखिया बेकार ;
लगता है इस घर की
नींव रही
डोल ।
चेहरे चिकने लेकिन
दिखतीं कम मुस्कानें,
फट जातीं आस्तीन
दिन भर ताने-ताने ;
हर कुर्सी के नीचे
अरबों का
झोल ।
वादों में सेवा और
मन में बस है मेवा,
चुननेवाली नगरी
हो जाती है बेवा ;
साजन के आसन का
अरबों में
मोल ।
एक बसा
गोल ।
बच्चों से भरा-पुरा
लंबा परिवार,
आपस में झगड़ें सब
मुखिया बेकार ;
लगता है इस घर की
नींव रही
डोल ।
चेहरे चिकने लेकिन
दिखतीं कम मुस्कानें,
फट जातीं आस्तीन
दिन भर ताने-ताने ;
हर कुर्सी के नीचे
अरबों का
झोल ।
वादों में सेवा और
मन में बस है मेवा,
चुननेवाली नगरी
हो जाती है बेवा ;
साजन के आसन का
अरबों में
मोल ।
Friday, November 2, 2012
चौथ के चंदा निकल आ
चौथ के चंदा
निकल आ ।
शरद ऋतु की
पूर्णिमा
आकर गई है,
रात लगने लगी
फिर से
सुर्मई है ;
अब कहीं जाकर
न छिप जा ।
भूख में भी
प्यार का
अहसास है,
प्यास में भी
प्रिय मिलन की
आस है;
उनको अपने
साथ ले आ ।
सोलहो श्रृंगार
फीका
पड़ रहा है,
रंग मेंहदी
कंटकों सा
गड़ रहा है ;
तू परीक्षा
ले रहा क्या !
( करवा चौथ - 2 नवंबर, 2012)
निकल आ ।
शरद ऋतु की
पूर्णिमा
आकर गई है,
रात लगने लगी
फिर से
सुर्मई है ;
अब कहीं जाकर
न छिप जा ।
भूख में भी
प्यार का
अहसास है,
प्यास में भी
प्रिय मिलन की
आस है;
उनको अपने
साथ ले आ ।
सोलहो श्रृंगार
फीका
पड़ रहा है,
रंग मेंहदी
कंटकों सा
गड़ रहा है ;
तू परीक्षा
ले रहा क्या !
( करवा चौथ - 2 नवंबर, 2012)
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