मुट्ठी बांध
जोर से बोल,
प्यारे अपनी
किस्मत खोल ।
सत्ता सदा
शक्ति की दासी,
दबा दिए जाते
मृदुभाषी ;
बजा जोर से
अपनी ढोल ।
पढ़े - लिखों का
फीका रंग,
छाप अँगूठा
बने दबंग ;
आगे बढ़ तू
करके झोल ।
दिखे जिधर भी
पलड़ा भारी,
झुकने की
कर ले तैयारी ;
संग हवा के
तू भी डोल ।
करता रह तू
सारे पाप,
मुँह में राम
नाम का जाप;
जब तक खुले
न अपनी पोल ।
(19 जुलाई, 2013)
जोर से बोल,
प्यारे अपनी
किस्मत खोल ।
सत्ता सदा
शक्ति की दासी,
दबा दिए जाते
मृदुभाषी ;
बजा जोर से
अपनी ढोल ।
पढ़े - लिखों का
फीका रंग,
छाप अँगूठा
बने दबंग ;
आगे बढ़ तू
करके झोल ।
दिखे जिधर भी
पलड़ा भारी,
झुकने की
कर ले तैयारी ;
संग हवा के
तू भी डोल ।
करता रह तू
सारे पाप,
मुँह में राम
नाम का जाप;
जब तक खुले
न अपनी पोल ।
(19 जुलाई, 2013)
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