Tuesday, November 27, 2012

दादा अबकी लेकर आना एक मारुति कार

दादा अबकी
लेकर आना
एक मारुति कार

सुबह-शाम
सासू की खिच-खिच
ननद सुनाए ताना
गए तीन दिन बीत
गया मुंह
नहीं एक भी दाना

नई आल्टो से कम
कुछ भी
नहीं इन्हें स्वीकार

बाबू जी तो सीधे-सादे
ज्यों
दाँतों बिच जीभ
लेकिन ये
मिट्टी के माधौ
फूटे मेरे नसीब

दिन कट जाता
काम-काज में
रात हुई दुश्वार

जान रही, तुम
हो तंगी में
भैया बेरोजगार
मुनिया की
शादी में भी अब
बरस बचे दो-चार

दिल पर पत्थर
रखकर लिक्खी
चिट्ठी है इस बार

( 27 नवंबर, 2012)


No comments:

Post a Comment