दादा अबकी
लेकर आना
एक मारुति कार
सुबह-शाम
सासू की खिच-खिच
ननद सुनाए ताना
गए तीन दिन बीत
गया मुंह
नहीं एक भी दाना
नई आल्टो से कम
कुछ भी
नहीं इन्हें स्वीकार
बाबू जी तो सीधे-सादे
ज्यों
दाँतों बिच जीभ
लेकिन ये
मिट्टी के माधौ
फूटे मेरे नसीब
दिन कट जाता
काम-काज में
रात हुई दुश्वार
जान रही, तुम
हो तंगी में
भैया बेरोजगार
मुनिया की
शादी में भी अब
बरस बचे दो-चार
दिल पर पत्थर
रखकर लिक्खी
चिट्ठी है इस बार
( 27 नवंबर, 2012)
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