दिल्ली के दिल में घर
एक बसा
गोल ।
बच्चों से भरा-पुरा
लंबा परिवार,
आपस में झगड़ें सब
मुखिया बेकार ;
लगता है इस घर की
नींव रही
डोल ।
चेहरे चिकने लेकिन
दिखतीं कम मुस्कानें,
फट जातीं आस्तीन
दिन भर ताने-ताने ;
हर कुर्सी के नीचे
अरबों का
झोल ।
वादों में सेवा और
मन में बस है मेवा,
चुननेवाली नगरी
हो जाती है बेवा ;
साजन के आसन का
अरबों में
मोल ।
एक बसा
गोल ।
बच्चों से भरा-पुरा
लंबा परिवार,
आपस में झगड़ें सब
मुखिया बेकार ;
लगता है इस घर की
नींव रही
डोल ।
चेहरे चिकने लेकिन
दिखतीं कम मुस्कानें,
फट जातीं आस्तीन
दिन भर ताने-ताने ;
हर कुर्सी के नीचे
अरबों का
झोल ।
वादों में सेवा और
मन में बस है मेवा,
चुननेवाली नगरी
हो जाती है बेवा ;
साजन के आसन का
अरबों में
मोल ।
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