हुए शुरू सतरंगी दाँव
शायद फिर आ गए चुनाव ।
दीवारों से अब तक
मिटी नहीं जो परतें
लिखी जा रहीं उनपर
नई-नई कुछ शर्तें ;
सागर में कागज की नाव ।
गुट-निर्गुट में उलझी
आपस की बातचीत
उड़ रही बयानों में
कहीं हार - कहीं जीत ;
बन गए बिसात शहर-गाँव ।
परिवर्तन की आशा
में होते परिवर्तन
शाश्वत कुव्यवस्था ही
करती फिर भी नर्तन ;
घावों पर लगे नए घाव ।
स्वागत गणतंत्र किंतु
लगती किस्मत खोटी
दिन पर दिन छोटी
होती जाए रोटी ;
चढ़े गगन भाजी के भाव ।
(किसी चुनाव की आहट सुनाई देने पर लिखी गई )
शायद फिर आ गए चुनाव ।
दीवारों से अब तक
मिटी नहीं जो परतें
लिखी जा रहीं उनपर
नई-नई कुछ शर्तें ;
सागर में कागज की नाव ।
गुट-निर्गुट में उलझी
आपस की बातचीत
उड़ रही बयानों में
कहीं हार - कहीं जीत ;
बन गए बिसात शहर-गाँव ।
परिवर्तन की आशा
में होते परिवर्तन
शाश्वत कुव्यवस्था ही
करती फिर भी नर्तन ;
घावों पर लगे नए घाव ।
स्वागत गणतंत्र किंतु
लगती किस्मत खोटी
दिन पर दिन छोटी
होती जाए रोटी ;
चढ़े गगन भाजी के भाव ।
(किसी चुनाव की आहट सुनाई देने पर लिखी गई )
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