Wednesday, October 31, 2012

गाए राग वसंत

चेहरा पीला आटा गीला
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत ।

मंदी का है दौर
नौकरी अंतिम साँस गिने
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने ;

सुबह दिखें खुश, रूठ न जाएं
शाम तलक श्रीमंत ।

चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता न कोई पुछत्तर;

चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत ।

नेता अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचे-खुचे खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े ;

साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड ।

( 21 अक्तूबर, 2010 को रचित) 

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