चेहरा पीला आटा गीला
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत ।
मंदी का है दौर
नौकरी अंतिम साँस गिने
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने ;
सुबह दिखें खुश, रूठ न जाएं
शाम तलक श्रीमंत ।
चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता न कोई पुछत्तर;
चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत ।
नेता अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचे-खुचे खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े ;
साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड ।
( 21 अक्तूबर, 2010 को रचित)
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत ।
मंदी का है दौर
नौकरी अंतिम साँस गिने
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने ;
सुबह दिखें खुश, रूठ न जाएं
शाम तलक श्रीमंत ।
चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता न कोई पुछत्तर;
चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत ।
नेता अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचे-खुचे खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े ;
साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड ।
( 21 अक्तूबर, 2010 को रचित)
No comments:
Post a Comment